भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् 25.6.1993 को आयोजित बैठक में परिषद् के क्षेत्रीय केन्द्रों की स्थापना के निर्णय के अनुसरण में, उत्तर-पूर्व क्षेत्रीय केन्द्र की स्थापना 1 अगस्त, 1997 को की गई। अपनी स्थापना से ही, उत्तर-पूर्व क्षेत्रीय केन्द्र विविध शैक्षणिक कार्यक्रमों के माध्यम से इतिहास में शोध का प्रसार करने में परिषद् की सहायता कर रहा है। इन कार्यक्रमों में कार्यशालाएँ, संगोष्ठियाँ, सम्मेलन, व्याख्यान कार्यक्रम आदि शामिल हैं। अपने शैक्षणिक कार्यक्रमों के द्वारा, उत्तर-पूर्व क्षेत्रीय केन्द्र शैक्षणिक चर्चा के सफल केन्द्र के रूप में विकसित हो रहा है। केन्द्र का पुस्तकालय वर्ष 1998 में आरम्भ हुआ और तभी से यह क्षेत्र का सर्वाधिक चर्चित पुस्तकालय बन गया है।
प्रख्यात इतिहासकारों की एक सलाहकार समिति उत्तर-पूर्व क्षेत्रीय केन्द्र के कार्यक्रमों की योजना पर परामर्श देती है।
क्षेत्र में इतिहास व संबद्ध माध्यमों में शोध के विकास हेतु उत्तर-पूर्व क्षेत्रीय केन्द्र, परिषद् की विस्तार शाखा के रूप में कार्य करता है। इस क्षेत्र के छात्रों और इतिहासकारों, विशेषकर युवा छात्रों/शोधार्थियों में पारम्परिक संवाद हेतु मंच प्रदान करने के लिए केन्द्र की गतिविधियाँ योजित की जाती है। यह केन्द्र इस क्षेत्र के छात्रों/शोधार्थियों को भा.इ.अ.परिषद् के लक्ष्यों व उद्देश्यों और परिषद् की वित्तपोषण योजना से परिचित करवाने के लिए प्रचारात्मक गतिविधियों का उपायोयजन करता है :-
पिछले 20 वर्षों में केन्द्र ने इस क्षेत्र के विभिन्न भागों में 100 से भी अधिक शैक्षणिक गतिविधियाँ व्याख्यान/संगोष्ठी/कार्यशाला/सम्मेलन/प्रदर्शनी और पुस्तक चर्चा के रूप में आयोजित की हैं। इनमें से कई कार्यक्रमों में भारत और विदेश के शोध छात्रों ने भाग लिया।
उत्तर-पूर्व क्षेत्रीय केन्द्र के पुस्तकालय में इतिहास और सम्बद्ध विषयों पर लगभग 9000 पुस्तकों का संग्रह है। ऑनलाईन डाटाबेस जैसे जेस्टोर एंव अन्य को भी पुस्तकालय में एक्सेस किया जा सकता है इसके अलावा पुस्तकालय के संग्रह में क्षेत्र की विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित कई पुराने समाचार पत्र हैं। पुस्तकालय में प्रख्यात इतिहासकार एस.के.बोरपुजारी और प्रख्यात समाजशास्त्री बी. दत्तात्रेय के संग्रह भी है। सामान्यतः प्रतिवर्ष लगभग 4000 छात्र पुस्तकालय में आते हैं।
व्याख्यान श्रृंखला प्रकाशनों के भागों के रूप में केन्द्र द्वारा 12 व्याख्यान मोनोग्राफ की शक्ल में प्रकाशित किए गए है।
केन्द्र वर्तमान में दो मुख्य परियोजनाओं का निरीक्षण कर रहा है उत्तर-पूर्व भारत में ग्रन्थगारीय स्रोतों पर सर्वेक्षण, संग्रह और प्रलेखन परियोजना पूर्ण ही होने वाली है। दूसरी परियोजना उत्तर-पूर्व भारत के व्यापक इतिहास.